पंचतंत्र Panchatantra
पंचतंत्र नीति, कथा और कहानियों का आचार्य पंडित विष्णु शर्मा द्वारा रचित कथा-संग्रह है, जिसे संस्कृत नीति-कथाओं में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है इसकी रचना की तिथि के बारे में ठीक ठीक दावे करना मुश्किल है क्योंकि इसका मूल संस्कृत संस्करण उपलब्ध नहीं है, लेकिन फिर भी इसका रचना काल दूसरी-तीसरी शताब्दी के आस-पास माना जाता है. पंचतंत्र की कहानी में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी रुचि लेते हैं तथा इससे सीख लेते हैं। पंचतंत्र की कहानी के पीछे कोई ना कोई नैतिक शिक्षा या मूल छिपा होता है जो हमें ज्ञान के माध्यम से जीवन में नैतिक मार्ग की सीख देता है। पंचतंत्र की कहानी बच्चे बड़ी चाव से पढ़ते हैं विभिन्न पाठ्यक्रम और शिक्षण संस्थानों में इनका अपना एक विशेष महत्व है
इसके विभिन्न अनुवाद इस कथा-संग्रह को समाज खासकर बच्चों के लिए सुलभ बनाते हैं. अब तक विश्व की लगभग 75 भाषाओँ में इसका अनुवाद किया जा चुका है. इसके 200 से ज्यादा संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं.
विश्व साहित्य में पंचतंत्र को उच्च स्थान प्राप्त है. पहलवी भाषा में उपलब्ध अनुवाद ‘करकटदमनक’ इसका प्राचीनतम अनुवाद माना जाता है. जर्मन साहित्य पर पंचतंत्र का अत्यधिक प्रभाव देखा जाता है इसके अतिरिक्त ग्रीक साहित्य की ईसप की कहानियों तथा अरब साहित्य की ‘अरेबियन नाइट्स’ की कहानियों का मूल पंचतंत्र ही है.
प्रष्ठभूमि Background –
दक्षिण भारत के एक जनपद में महिलारोप्य नामक नगर था, जहाँ अमरशक्ति नाम के राजा का शासन था. वह बड़ा ही वीर, पराक्रमी और दयालु होने के साथ-साथ नीतिज्ञ, विद्वान और समस्त कलाओं में पारंगत था. किंतु उसके तीन पुत्र बहुत्शक्ति, उग्रशक्ति तथा अनंतशक्ति अज्ञानी, अविवेकी और अहंकारी थे. राजा अपने पुत्रों को लेकर सदा चिंतित रहा करता था. एक दिन मंत्रणा करते हुए वो अपने मंत्रियों से बोला, “ऐसे अज्ञानी और अहंकारी पुत्रों से निःसंतान होना भला है. ऐसे पुत्र जीवन भर की पीड़ा और अपमान का कारण बनते हैं. आप ऐसा कुछ कीजिये कि मेरे पुत्र ज्ञानवान हो जायें.”
विचार-विमर्श के उपरांत महामंत्री ने सुझाया कि राजकुमारों को संक्षेप में शास्त्रों का ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए, अन्यथा ज्ञान प्राप्ति में इनका संपूर्ण जीवन व्यतीत हो जायेगा. राजकुमारों के अध्यापन कार्य के लिए उन्होंने आचार्य पंडित विष्णु शर्मा का नाम प्रस्तावित किया.
राजा ने पंडित विष्णु शर्मा को दरबार में आमंत्रित किया और कहा, “आचार्य, अपने ज्ञान के सागर की कुछ बूंदें मेरे अज्ञानी पुत्रों के मस्तिष्कपटल पर डालिये , ताकि वे व्यावहारिक और राजकीय ज्ञान में निपुण हो सके. शिक्षण कार्य सफल होने पर मैं आपको सौ गाँव उपहारस्वरुप प्रदान करूंगा.”
पंडित विष्णु शर्मा ने सौ गाँव लेना स्वीकार नहीं किया, किंतु राजकुमारों को ज्ञान प्रदान करना स्वीकार कर लिया. उन्होंने कहा, “राजन ! मैं ज्ञान का विक्रय नहीं करता . इसलिए मैं बिना किसी स्वार्थ के आपके पुत्रों को ज्ञान प्रदान करुंगा. मैं प्रण लेता हूँ कि छः माह के भीतर यदि मैं आपके तीनों पुत्रों को नीति ज्ञान से पारंगत न कर दूं, तो ईश्वर मुझे ज्ञान-शून्य कर दे.”
राजा ने तीनों राजकुमारों को पंडित विष्णुशर्मा की शरण में भेज दिया. तीनों राजकुमारों को नीति शिक्षा प्रदान करने पंडित विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र नामक ग्रंथ की रचना की और छः माह में ही उन्होंने तीनों राजकुमारों को ज्ञान में पारंगत कर दिया
पंचतंत्र की विषयवस्तु Contents of Panchatantra
पंचतंत्र की कहानियाँ पाँच तंत्रों में विभाजित है और बड़े ही सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत की गई है. कहानियों में मानव पात्रों के साथ ही पशु-पक्षियों के पात्र भी चित्रित किये गए हैं. सभी कहानियाँ मनो-विज्ञान, व्यावहारिकता और राजकाज के सिद्धांतों को प्रस्तुत कर लोक-व्यवहार की सीख देती है और नेतृत्व क्षमता का विकास करती है.
पंचतन्त्र में पांच तन्त्र या विभाग है। तन्त्र इसलिए कहा गया है क्योंकि इनमें नैतिकतापूर्ण शासन की विधियाँ बतायीं गयीं हैं। ये तन्त्र हैं- मित्रभेद, मित्रसम्प्राप्ति, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाश एवं अपरीक्षितकारक।
संक्षेप में पंचतंत्र की विषयवस्तु इस प्रकार है-
मित्रभेद (मित्रों में अलगाव और मनमुटाव) – इस तंत्र/भाग में मित्रों के मध्य अलगाव या शत्रुता उत्पन्न किये जाने का वर्णन है.
1. बन्दर और लकड़ी का खूंटा – THE MONKEY AND THE WEDGE
2. सियार और ढोल – THE JACKAL AND THE DRUM
3. व्यापारी का पतन और उदय – FALL AND RISE OF THE MERCHANT
4. मूर्ख साधू और ठग – The Foolish Sage & Swindler
मित्रसंप्राप्ति (मित्रप्राप्ति और मित्रलाभ) – इस तंत्र/भाग में यह वर्णन किया गया है कि मित्र प्राप्ति से कितना सुख और हर्ष प्राप्त होता है. यह तंत्र शिक्षा देता है कि जीवन में उपयोगी मित्र बनाने चाहिए.
ककोलूकियम (कौवे और उल्लुओं की कथा) – इस तंत्र/भाग में युद्ध और संधि का वर्णन कौवे और उल्लू की कथा द्वारा किया गया है. इस तंत्र में बताया गया है कि कैसे युद्ध में विजय प्राप्त करने अर्थात् अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए अपने शत्रु से संधि/मित्रता कर लेनी चाहिए और बाद में अवसर पाकर उससे छल कर उसे नष्ट कर देना चाहिए. कथा सार है कि अपने शत्रु की उपेक्षा करने वाला व्यक्ति उस शत्रु द्वारा ही नष्ट हो जाता है.
लब्धप्रणाश (अभीष्ट वस्तु का हाथ से निकल जाना) – इस तंत्र/भाग में हाथ आई अभीष्ट वस्तु के हाथ से निकल जाने की व्यथा का वर्णन किया गया है. इस भाग में यह शिक्षा प्रदान की गई है कि बुद्धिमान कैसे अपने बुद्धिबल से सब कुछ हासिल कर लेता और बुद्धिहीन अपनी मूर्खता के कारण सब कुछ पाकर भी खो देता है.
अपरीक्षितकारकम (बिना विचारे कार्य न करें) – इस तंत्र/भाग में बिना विचारे और परखे कार्य न करने की सीख प्रदान की गई है, क्योंकि बिना विचार के किसी का अंधानुकरण करने से कभी कार्य सिद्ध नहीं होता.
मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है। ज्ञान मार्ग पर हम पंचतंत्र की सभी कहानियों को प्रकाशित करेंगे ताकि आप उन्हें एक जगह पर पढ़ पाएं और उनसे सीख पाएं। जैसे जैसे कहानियां प्रकाशित की जयेंगी , नीचे दिए गए पंचतंत्र panchatantra लिंक को भी अपडेट किया जायेगा, आप चाहें तो इस पेज को बुकमार्क कर लें ताकि बाद में आपको पढ़ने में आसानी हो।
निष्कर्ष Conclusion
“पंचतन्त्र एक नीति शास्त्र या नीति ग्रन्थ है- नीति का अर्थ जीवन में बुद्धि पूर्वक व्यवहार करना है। चतुरता और धूर्तता नहीं, नैतिक जीवन वह जीवन है जिसमें मनुष्य की समस्त शक्तियों और सम्भावनाओं का विकास हो अर्थात् एक ऐसे जीवन की प्राप्ति हो जिसमें आत्मरक्षा, धन-समृद्धि, सत्कर्म, मित्रता एवं विद्या की प्राप्ति हो सके और इनका इस प्रकार समन्वय किया गया हो कि जिससे आनंद की प्राप्ति हो सके, इसी प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए, पंचतन्त्र में चतुर एवं बुद्धिमान पशु-पक्षियों के कार्य व्यापारों से सम्बद्ध कहानियां ग्रथित की गई हैं। पंचतन्त्र की परम्परा के अनुसार भी इसकी रचना एक राजा के उन्मार्गगामी पुत्रों की शिक्षा के लिए की गई है और लेखक इसमें पूर्ण सफल रहा है।”
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