श्री रामचरितमानस – पारायण विधि
श्री रामचरित मानस का विधिपूर्वक पाठ करने से पुर्व श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा हनुमानजी का आवाहन-पूजन करने के पश्चात् तीनों भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आवाहन, षोडशोपचार-पूजन और ध्यान करना चाहिये। तदन्तर पाठ का आरम्भ करना चाहियेः-
आवाहन मन्त्रः
तुलसीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुचिव्रत।
नैर्ऋत्य उपविश्येदं पूजनं प्रतिगृह्यताम्॥१॥
ॐ तुलसीदासाय नमः
श्रीवाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभप्रद।
उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृह्णीष्व मेऽर्चनम्॥२॥
ॐ वाल्मीकाय नमः
गौरीपते नमस्तुभ्यमिहागच्छ महेश्वर।
पूर्वदक्षिणयोर्मध्ये तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥३॥
ॐ गौरीपतये नमः
श्रीलक्ष्मण नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
याम्यभागे समातिष्ठ पूजनं संगृहाण मे॥४॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय लक्ष्मणाय नमः
श्रीशत्रुघ्न नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठस्य पश्चिमे भागे पूजनं स्वीकुरुष्व मे॥५॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय शत्रुघ्नाय नमः
श्रीभरत नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठकस्योत्तरे भागे तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥६॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय भरताय नमः
श्रीहनुमन्नमस्तुभ्यमिहागच्छ कृपानिधे।
पूर्वभागे समातिष्ठ पूजनं स्वीकुरु प्रभो॥७॥
ॐ हनुमते नमः
अथ प्रधानपूजा च कर्तव्या विधिपूर्वकम्।
पुष्पाञ्जलिं गृहीत्वा तु ध्यानं कुर्यात्परस्य च॥८॥
रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनं पीताम्बरालंकृतं
श्यामांगं द्विभुजं प्रसन्नवदनं श्रीसीतया शोभितम्।
कारुण्यामृतसागरं प्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं
वन्दे विष्णुशिवादिसेव्यमनिशं भक्तेष्टसिद्धिप्रदम्॥९॥
आगच्छ जानकीनाथ जानक्या सह राघव।
गृहाण मम पूजां च वायुपुत्रादिभिर्युतः॥१०॥
इत्यावाहनम्
सुवर्णरचितं राम दिव्यास्तरणशोभितम्।
आसनं हि मया दत्तं गृहाण मणिचित्रितम्॥११॥
इति षोडशोपचारैः पूजयेत्
ॐ अस्य श्रीमन्मानसरामायणश्रीरामचरितस्य श्रीशिवकाकभुशुण्डियाज्ञवल्क्यगोस्वामीतुलसीदासा ऋषयः श्रीसीतरामो देवता श्रीरामनाम
बीजं भवरोगहरी भक्तिः शक्तिः मम नियन्त्रिताशेषविघ्नतया श्रीसीतारामप्रीतिपूर्वकसकलमनोरथसिद्धयर्थं पाठे विनियोगः।
अथाचमनम्
श्रीसीतारामाभ्यां नमः। श्रीरामचन्द्राय नमः। श्रीरामभद्राय नमः।
इति मन्त्रत्रितयेन आचमनं कुर्यात्। श्रीयुगलबीजमन्त्रेण प्राणायामं कुर्यात्॥
अथ करन्यासः
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
अगुंष्ठाभ्यां नमः
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
तर्जनीभ्यां नमः
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
मध्यमाभ्यां नमः
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
अनामिकाभ्यां नमः
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
कनिष्ठिकाभ्यां नमः
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
इति करन्यासः
अथ ह्रदयादिन्यासः
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
ह्रदयाय नमः।
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
शिरसे स्वाहा।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
शिखायै वषट्।
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
कवचाय हुम्
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
नेत्राभ्यां वौषट्
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
अस्त्राय फट्
इति ह्रदयादिन्यासः
अथ ध्यानम्
मामवलोकय पंकजलोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
नील तामरस स्याम काम अरि। ह्रदय कंज मकरंद मधुप हरि॥
जातुधान बरुथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥
भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥
भुजबल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित॥
रावनारि सुखरुप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥
सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब विधि कुसल कोसला मंडन॥
कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥
इति ध्यानम्